ब्लौग सेतु....

28 जनवरी 2017

अवमूल्यन किसका हुआ है

लोग कहते है रूपये का अवमूल्यन(Devaluation)कम हुआ है लेकिन उससे जादा तो इन्शान का अव-मूल्यन हुआ जादा लगता है आज परिवर्तन के युग में हम खुद को पिछड़ा दलित ही मानते है क्युकि संस्कार मेरी जन्म घुट्टी में इतना मिला कर पिलाया गया था वर्ना तो आज हम भी आधुनिकता(Modernity)की इस दौड़ में आगे होते-

अवमूल्यन किसका हुआ है


पाश्चात्य सभ्यता(Western civilization)का युवा जिस तरह आदी होता जा रहा है उससे तो ये सर्व-सिद्ध हो जाता है कि आने वाले समय में भारतीय संस्कृति(Indian Culture)विलुप्त हो जायेगी अब तो जिसे देखो पाश्चात्य संस्कृति का दीवाना बन चुका है आधुनिकता रोम-रोम में रच -बस रही है लेकिन आधुनिकता सिर्फ फैशन(Fashion)में ही नजर आ रही है इसका वास्तविक अर्थ तो शायद ही किसी- किसी को पता होगा-बस भागे जा रहे है इस दौड़ में शामिल होने के लिए -कही भूल वश वो किसी से पीछे न रह जाए-भारत में तो वैसे भी ये कहावत सटीक ही बैठती है "गतानुगति लोक:"अर्थात "नकल करने वाले "

आधुनिकता सिर्फ फैशन में ही नजर आ रही है टी.वी और सिनेमा की फैशन परस्त दुनियां को देख कर लोग वही वस्त्र-वही विचार अपनाते जा रहे है जबकि वास्तविक आधुनिकता है मनुष्य को जागरूक विचारों(Conscious thoughts)से जीना सिखाती है न कि बस सिर्फ फैशन को अपना लिया और बन गए आधुनिक - 

आज युग बदल गया है जितनी ऊँची सैंडल की हील है वो लड़की उतनी ही सुशील है बस फर्क इतना है पहले जितना लम्बा घुंघट होता था वो उतनी सुशील होती थी-आज संस्कृति के बस मूल्य बदल गए है-नारी तो वही है-अब शर्मो-हया सिर्फ किताबो में लिखने की वस्तु होती जा रही है-आजकल हमारी कन्याएं मल्टीनेशनल-ग्लेमर(Multinational-Glamour)की चकाचौंध के आगे पुराने युग की अप्सराएं को भी मात दे रही है आज हर एक कन्या विस्वामित्र के सब्र का बाँध तोड़ने के लिए काफी है -

फैशन के इस दौर में सामजिक मूल्य(social values)बदलते जा रहे है दफ्तर में आज जो सबसे हशीन है-उसका इन्क्रीमेंट भी उतना अधिक है लड़कों का बुरी तरह अवमूल्यन हुआ है शायद उनका मूल्य डालर के मुकाबले अब चवन्नी सा हो गया है-कल ही मुझे मेरी बीबी भी कह रही थी आप तो चवन्नी छाप हो उस दिन से मुझे अपनी कीमत का पता चला है वर्ना मुझे लगता था मै किसी काम का नहीं हूँ-

बस बाकी थी एक कमी वो भी पूरी हो रही है लोग समलैंगिकता(Homosexuality)के पक्षधर है-हो भी क्यों न -आबादी पे अंकुश का इससे अच्छा कोई और रास्ता भी तो नहीं है- 

वक्त बदल गया है बॉस की बीबी घर पे और बॉस आफिस में ओवर टाइम करते है-स्टेनो बॉस को उल्लू बना रही है तो बॉस स्टेनो को उल्लू बनाता है कमाल का धमाल है बड़ा बुरा हाल है-आधुनिक मार्डन महिलाए घर पर कम आफिस में जादा पाई जाती है -बॉस हैं तो पोपले- आम लेकिन सर्जरी करा कर कास्मेटिक कराके-लाल टमाटर बन -गोपियों को रिझाने पे आमादा है-

पहले तो मूंछ के बाल गिरवी रखने से स्वर्णकार भी पैसे ब्याज पे दे देता था आज रखने को मूंछ ही नहीं बची है इसलिए स्वर्णकारों पे भी मंदी का दौर छाया हुआ है-

अमीर पहले वो था जिसके कई बेटे हुआ करते थे आज अमीर वो है जिसकी सबसे जादा काली कमाई है -हम भी ईश्वर से जाके शिकायत करेगे -बस एक बार नेता बना देना -भले पांच साल के बाद मुझे वापस स्वर्ग बुला लेना- इतना ही बहुत है दस पीढ़ियों के लिए-

अश्लीलता तो खुद-ब-खुद आज सडको घूमती है और इल्जाम लड़कों के सर-माथे पे आ जाता है-नाई की कैंची से जादा तेज जुबान हो गई है क्युकि -बहू अब सास बन गई है-बीबी को देखने की गुस्ताखी आप क्यों करते हो ये श्रंगार तो पडोसी के लिए है -युवा इतना स्मार्ट बन गया है बाप को कहता है आपने अपने मजे के लिए मुझे जन्म दे दिया है -

आधुनिकता अपनाना है तो रोज एक नई जिन्दगी में प्रवेश कीजिये वर्ना आप भी मेरी तरह पिछड़े दलित कहलायेगें और फिर पिछड़ गए तो आरक्षण-आरक्षण ही चिल्लायेगे-

एक कटु व्यंग-

25 जनवरी 2017

रमेशराज के देशभक्ति के बालगीत




रमेशराज के देशभक्ति के बालगीत
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।। तिरंगा लहराए ।।
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देश रहे खुशहाल, तिरंगा लहराए
चमके माँ का भाल,तिरंगा लहराए।

आजादी का पर्व मनायें हम हँसकर
कुछ भी हो हर हाल तिरंगा लहराए।

व्यर्थ न जाए बलिवीरों की कुर्बानी
ऐसे ही हर साल तिरंगा लहराए।

इसकी खातिर चढ़े भगत सिंह फाँसी पर
मिटें हजारों लाल, तिरंगा लहराए।

कर देना नाकाम सुनो मेरे वीरो
दुश्मन की हर चाल, तिरंगा लहराए।

बुरी नजर जो डाले अपने भारत पर
खींचे उसकी खाल, तिरंगा लहराए।

दुश्मन आगे बढ़े, समर में कूद पड़ो
ठौंक-ठौंक कर ताल, तिरंगा लहराए।

दुश्मन भागे छोड़ समर को पीठ दिखा
ऐसा करें कमाल, तिरंगा लहराए।

भ्रष्टाचारी तस्कर देशद्रोहियों की
गले न कोई दाल, तिरंगा लहराए।
-रमेशराज



।। तिरंगा लहराए ।।
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रहे देश का मान तिरंगा लहराए
चाहे जाये जान, तिरंगा लहराए।

युद्धभूमि में हम सैनिक बढ़ते जाते
बन्दूकों को तान, तिरंगा लहराए।

वीर शहीदों ने देकर अपनी जानें
सदा बढ़ायी शान, तिरंगा लहराए।

हर दुश्मन के सीने को कर दें छलनी
हम हैं तीर-कमान, तिरंगा लहराए।

रहे हमेशा हँसता गाता मुसकाता
अपना हिन्दुस्तान, तिरंगा लहराए।

ऐसा रण-कौशल अपनाते हम सैनिक
दुश्मन हो हैरान, तिरंगा लहराए।

हम भोले हैं लेकिन हम डरपोक नहीं
अपनी ये पहचान, तिरंगा लहराए।

पूरा कर उसको पलभर में दिखलाते
लें मन में जो ठान, तिरंगा लहराए।
-रमेशराज



।। ऐसा मेरा हिन्दुस्तान ।।
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रही हमेशा मन में जिसके
केवल पंचशीलता,
भरी हुई जिसकी रग-रग में
करुणा दया सौम्यता।
जिसमें जन्मे लाल बहादुर जैसे कई महान,
ऐसा मेरा हिन्दुस्तान।

राणा वीर शिवाजी जैसा
पौरुष पाया जाता,
युग-युग से गौरव गाथाएँ
जिसकी ये जग गाता।
परमारथ के लिये तज दिये झट दधीचि ने प्रान,
ऐसा मेरा हिन्दुस्तान।

जिसके कण-कण में  बसती है,
फूलों-सी कोमलता।
जहाँ हर किसी चहरे पर है,
फूलों-सी चंचलता।
जहाँ पढ़ायी जाती संग-संग गीता और कुरान,
ऐसा मेरा हिन्दुस्तान।
-रमेशराज



।। वीर सिपाही।।
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सीमा पर जाकर डट जायें हम भारत के वीर सिपाही
झट दुश्मन को मार भगायें हम भारत के वीर सिपाही।

सीना तान हमेशा देते भर-भर जोश शत्रु को टक्कर
नहीं पीठ पर गोली खायें हम भारत के वीर सिपाही।

कितनी भी विपदाएँ आयें, कभी न डरते या घबराते
आफत बीच सदा मुस्कायें हम भारत के बीच सिपाही।

हम आते जब भृकुटी ताने दुश्मन काँपे थर-थर,थर-थर
अरि दहले बन्दूक उठायें हम भारत के वीर सिपाही।

नहीं देखते युद्धभूमि में आँधी  तूफाँ ओले वर्षा
अरि के पैटनटेंक उड़ायें हम भारत के वीर सिपाही।
-रमेशराज



।। हम भारत के वीर सिपाही।।
पर्वत में भी राह बनायें
बाधाओं से नहीं डरे हैं
सत्य-मार्ग पर सदा चलें हैं
ऐसे अति मतवाले राही
हम भारत के वीर सिपाही।

इतना बस सीखा है हमने
सूरज कब रोका तम ने
यदि कोई  ललकारे हमको
बिना दोष ही मारे हमको
ला देते हम अजब तबाही
हम भारत के वीर सिपाही।।
 -रमेशराज



।। वीर बालक।।
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झूठ को ठुकरायेंगे हम वीर बालक,
सत्य को अपनायेंगे हम वीर बालक।

हैं तो नन्ही जान लेकिन हौसले हैं
जुल्म से टकरायेंगे हम वीर बालक।

जान देते, सर कटाते देशहित हम
हर समय मुसकायेंगे हम वीर बालक।

देश की बातें हों जिन किस्सों के भीतर,
गीत ऐसे गायेंगे हम वीर बालक।

जान से प्यारा  तिरंगा, बोल हर-हर
नित इसे फहरायेंगे हम वीर बालक

अब किसी बन्दूक से हम क्या डरेंगे,
गोलियां सह जायेंगे हम वीर बालक।

क्या टिकेगा शत्रु अब सम्मुख हमारे,
तान सीना आयेंगे हम वीर बालक।
-रमेशराज



।। तिरंगा।।
......................................
हम चाहें दिन-रात तिरंगा लहराए,
मिले शत्रु  को मात, तिरंगा लहराए।

चाहे जाए जान गोलियों  से या फिर
छलनी हो ये गात, तिरंगा लहराए।

जो पहरी बन सजग खड़ा है सीमा पर,
देंगे उसका साथ, तिरंगा लहराए।

हमने मेहनत के बल पर बढ़ना सीखा,
 हैं फौलादी हाथ, तिरंगा लहराए।

सच की खातिर अपनी जान गंवा देंगे,
हम ‘मीरा’, ‘सुकरात’, तिरंगा लहराए।

डाले बुरी  नजर जो अपने भारत पर,
है किसकी औकात? तिरंगा लहराए।
-रमेशराज



।। ऐसी थी झाँसी की रानी ।।
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बिजली-सी कड़का करती थी
शोलों-सी भड़का करती थी।

गोरों की सेना थर्राती
छोड़ समर फौरन भग जाती।

जब उठती तलवार युद्ध  में
दुश्मन माँगा करता पानी
ऐसी थी झाँसी की रानी।

आजादी के लिए लड़ी जो
अरिमर्दन को तुरत बढ़ी जो

जिसने कभी न झुकना सीखा
बस आगे ही बढ़ना सीखा

याद रहेगी बच्चो उसकी
युगों-युगों तक अमर कहानी
ऐसी थी झाँसी की रानी
-रमेशराज



।। जै जै हिन्दुस्तान ।।
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हम तो मानवतावादी हैं
देशप्रेम कर्त्तव्य हमारा
रंग-विरंगा अपना भारत
हमको इन्द्र-धनुष-सा प्यारा।
हम भारत के वीर जवान
जय-जय, जय-जय हिन्दुस्तान।।

हम सोना हैं, हम दमकेंगे
सूरज जैसे अब चमकेंगे
बर्फ सही, हम जब पिघलेंगे
गंगा जैसे तब निकलेंगे
दुश्मन को हम तीर-कमान
जय-जय, जय-जय हिन्दुस्तान।।
-रमेशराज



|| मेरा भारत ||
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सत्य अहिंसा का पूजक है,
जहां प्यार ही तो सब कुछ है,
सबका भला चाहने वाला-भारत है।

हिन्दू-मुस्लिम सिख-ईसाई
जिसमें सब रहते हैं भाई
बिना भेदभावों की शाला-भारत है।

राम-नाम की माला डाले,
जिसके कर में श्रम के छाले,
संत और मजदूरों वाला-भारत है।

जिसने अंधियारों से अक्सर
दीप-सरीखी जंगें लड़कर
सूरज बनकर भोर निकाला-भारत है।
+रमेशराज



|| जय जवान, जय किसान ||
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गोलियां खाते गये हम
गीत पर गाते गये हम,
देश है अपना महान
जय जवान,जय किसान।

हम नहीं सीखे हैं झुकना
राह में, रोड़ों में रुकना
हम पंडित या पठान
जय जवान, जय किसान।

हम सदा आगे बढ़े हैं
पर्वतों पर भी चढ़े हैं ,
फौलादी सीने को तान
जय जवान, जय किसान।

शत्रु को तलवार हैं हम
विषबुझे हथियार हैं हम,
मित्र का करते हैं मान
जय जवान, जय किसान।

लाल बहादुर की तरह हम
सत्य बोले हर जगह हम
चाहे निकले अपनी जान
जय जवान,जय किसान।
+रमेशराज
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001
मोबा.-9634551630     




24 जनवरी 2017

रमेशराज के शिक्षाप्रद बालगीत





रमेशराज के शिक्षाप्रद बालगीत   
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|| हमको कहते तितली रानी ||
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नाजुक-नाजुक पंख हमारे
रंग-विरंगे प्यारे-प्यारे।
इन्द्रधनु -सी छटा निराली
हम डोलें फूलों की डाली।

फूलों-सी मुस्कान हमारी
हम से तुएँ शोख- सुहानी
हमको कहते तितली रानी।

आओ बच्चो हम सँग खेलो
छुपा-छुपी की रीति निराली।
तुम आ जाना पीछे-पीछे
हम घूमेंगे डाली-डाली।

किन्तु पकड़ना हमको छोड़ो
सिर्फ दूर से नाता जोड़ो।
हम हैं केवल प्रेम-दिवानी
हमको कहते तितली रानी।
+रमेशराज



|| अब मम्मी सौगन्ध तुम्हारी ||
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हम हाथों में पत्थर लेकर
और न बन्दर के मारेंगे,
समझ गये हम तभी जीत है
लूले-लँगड़ों से हारेंगे।
चाहे कुत्ता भैंस गाय हो
सब हैं जीने के अधिकारी,
दया-भाव ही अपनायेंगे
अब मम्मी सौंगंध तुम्हारी।

छोड़ दिया मीनों के काँटा
डाल-डाल कर उन्हें पकड़ना,
और बड़े-बूढ़ों के सम्मुख
त्याग दिया उपहास-अकड़ना,
जान गये तितली होती है
रंग-विरंगी प्यारी-प्यारी
इसे पकड़ना महापाप है
अब मम्मी सौंगध तुम्हारी।

खेलेंगे-कूदेंगे लेकिन
करें साथ में खूब पढ़ायी,
सोनू मोनू राधा से हम
नहीं करेंगे और लड़ाई
हम बच्चे हैं मन से सच्चे
भोलापन पहचान हमारी
अब मम्मी सौगंध तुम्हारी।
+रमेशराज




|| अब का काम न कल पै छोड़ो ||
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मीठा होता मेहनत का फल
भाग खुलेगा मेहनत के बल।

छोड़ो निंदिया, आलस त्यागो
करो पढ़ायी मोहन जागो।

आलस है ऐसी बीमारी
जिसके कारण दुनिया हारी।

मेहनत से ही सफल बनोगे
जग में ऊँचा नाम करोगे।

मेहनत भागीरथ ने की थी
पर्वत से गंगाजी दी थी।

मेहनत से तुम नाता जोड़ो
अब का काम न कल पै छोड़ो।
+रमेशराज



|| कहें आपसे हम बच्चे ||
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भेदभाव की बात न हो
घायल कोई गात न हो।
पड़े न नफरत दिखलायी
रहें प्यार से सब भाई।
करें न आँखें नम बच्चे
कहें आपसे हम बच्चे।

हम छोटे हैं- आप बड़े
यदि यूँ ही अलगाव गढ़े
नहीं बचेगी मानवता
मुरझायेगी प्रेम-लता
झेलेंगे हम ग़म बच्चे
कहें आपसे हम बच्चे।
+रमेशराज



|| हम बच्चों की बात सुनो ||
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करे न कोई घात सुनो
हम बच्चों की बात सुनो।

बन जायेंगे हम दीपक
जब आयेगी रात सुनो।

हम हिन्दू ना मुस्लिम हैं
हम हैं मानवजात सुनो।

नफरत या दुर्भावों की
हमें न दो सौगात सुनो।

सचहित विष को पी लेंगे
हम बच्चे सुकरात सुनो।
+रमेशराज



|| हम बच्चे ||
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हम बच्चे हर दम मुस्काते
नफरत के हम गीत न गाते।

मक्कारी से बहुत दूर हैं
हम बच्चों के रिश्ते-नाते।

दिन-भर सिर्फ प्यार की नावें
मन की सरिता में तैराते।

दिखता जहाँ कहीं अँधियारा
दीप सरीखे हम जल जाते।

बड़े प्रदूषण लाते होंगे
हम बच्चे वादी महँकाते।
+रमेशराज



|| अब कर तू विज्ञान की बातें ||
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परी लोक की कथा सुना मत
ओरी प्यारी-प्यारी  नानी,
झूठे सभी भूत के किस्से
झूठी है हर प्रेत-कहानी।|

इस धरती की चर्चा कर तू
बतला नये ज्ञान की बातें
कैसे ये दिन निकला करता
कैसे फिर आ जातीं रातें?
क्यों होता यह वर्षा-ऋतु में
सूखा कहीं-कही पै पानी।|
कैसे काम करे कम्प्यूटर
कैसे चित्र दिखे टीवी पर
कैसे रीडिंग देता मीटर
अब कर तू विज्ञान की बातें
छोड़ पुराने राजा-रानी
ओरी प्यारी-प्यारी  नानी,
+रमेशराज



|| हम बच्चे हममें पावनता ||
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मुस्काते रहते हम हरदम
कुछ गाते रहते हम हरदम
भावों में अपने कोमलता
खिले कमल-सा मन अपना है ।

मीठी-मीठी बातें प्यारी
मन मोहें मुस्कानें प्यारी
हम बच्चे हममें पावनता
गंगाजल-सा मन अपना है ।

जो फुर-फुर उड़ता रहता है
बल खाता, मुड़ता रहता है
जिसमें है खग-सी चंचलता
उस बादल-सा मन अपना है ।

सब का चित्त मोह लेते हैं
स्पर्शों का सुख देते हैं 
भरी हुई हम में उज्जवलता
मखमल जैसा मन अपना है ।
+रमेशराज



।। सही धर्म का मतलब जानो ।।
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धर्म एक कविता होता है
फूलों-भरी कथा होता है

बच्चो तुमको इसे बचाना
केवल सच्चा धर्म निभाना।

यदि कविता की हत्या होगी
किसी ऋचा की हत्या होगी

बच्चो ऐसा काम न करना
कविता में मधु जीवन भरना।

सही धर्म का मतलब जानो
जनसेवा को सबकुछ मानो

यदि मानव-उपकार करोगे
जग में नूतन रंग भरोगे।

यदि तुमने यह मर्म न जाना
गीता के उपदेश जलेंगे

कुरआनों की हर आयत में
ढेरों आँसू मित्र मिलेंगे

इसीलिए बच्चो तुम जागो
घृणा-भरे चिन्तन से भागो

नफरत में मानव रोता है
धर्म एक कविता होता है।
-रमेशराज



।। अब पढ़ना है ।।
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सैर-सपाटे करते-करते
जी अब ऊब  चला
अब पढ़ना है आओ
पापा लौट चलें बंगला।

पिकनिक खूब मनायी हमने
जी अपना हर्षाया
देखे चीते भालू घोड़े
 चिड़ियाघर मन भाया
तोते का मीठा स्वर लगता कितना भला-भला।
अब पढ़ना है आओ पापा लौट चलें बँगला ।|

पूड़ी और पराठे घी के
बड़े चाव से खाये
यहाँ झील, झरने पोखर
अति अपने मन को भाये
खूब बजाया चिड़ियाघर में बन्दर ने तसला।
अब पढ़ना है आओ पापा लौट चलें बँगला।|
-रमेशराज



।। हम सावन के रिमझिम बादल ।।
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बहुत दिनों तक सूरज दादा
की तुमने मनमानी
गर्म-गर्म अंगारे फैंके
और सुखाया पानी।

प्यासे-प्यासे जीवजन्तु सब
नदिया नाले सूखे
लेकिन तुम ऐसा करने में
कभी न बिल्कुल चूके।

किन्तु समझ लो और इसतरह
कुछ भी नहीं चलेगा
हरा-भरा खेत बिन पानी
कोई नहीं जलेगा।

हम सावन के रिमझिम बादल
अब बरसायें पानी
हम धरती पर फूल खिलायें
खुश हो कोयल रानी।
-रमेशराज




।। माफ करो समधीजी ।।
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दूल्हा बनकर, थोड़ा तनकर,
खुश थे बंदर भाई
नाचें संगी-साथी उनके,
बजे मधुर  शहनाई।

लिए हाथ में वरमाला इक,
बंदरिया फिर  आई
दरवाजे पर दूल्हे राजा-
बंदर को पहनाई।

बदंर का बापू बोला फिर ,
‘‘बेटीवाले आओ।
क्या दोगे तुम अब दहेज में
उसकी लिस्ट बनाओ।’’

गुस्से में आकर ऐसे तब,
बोला बेटीवाला-
‘‘अब दहेज का नहीं जमाना,
क्या कहते हो लाला।

यदि की अक्कड़-बक्कड़ तुमने
फौरन पुलिस बुलाऊँ ।
पांच लाख की फौरन तुमको,
अब तो जेल दिखाऊँ ।’’

बंदर का बापू यह सुनकर,
थोड़ा-सा चकराया।
औ’ अपनी गलती पर बेहद,
शरमाया, पछताया।

बोला वह बेटीवाले से,
‘माप करो समधीजी।
माँग दहेज मैंने कर डाली
बहुत बड़ी गलती जी।’’
-रमेशराज


।। भालू की शादी ।।
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भालू दादा की शादी में,
केवल पांच बराती।
घोड़ा, बंदर, हिरन, शेरनी,
उसके मामा हाथी।

बिन सजधज के, बिना नगाड़े,
पहुंचे दुल्हन के घर,
बेटी वाले ने खातिर की
सबकी हाथ जोड़कर।

भालू जी ने फिर दुल्हन को,
वरमाला पहनायी।
और सभी बारातीजन ने
ताली खूब बजायी।

हुयी इस तरह बहुत खुशी से
भालूजी की शादी।
दोनों तरफ बहुत ही कम थी,
पैसे की बरबादी।।
-रमेशराज



।। विकलांगों पर दया करो ।।
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अंधों  की लाठी बन जायें,
मंजिल तक इनको पहुंचायें,
इनका दुःख हो अपना ही दुःख
इनका सुख हो अपना सुख।
काम आयें कुछ तो दीनों के,
पग बन करके पग-हीनों के।

दुखियारों को मित्र बनाकर,
चलें कदम से कदम मिलाकर।
लिये बनें उच्च आदर्श
विकलांगों के मित्र सहर्ष।
-रमेशराज



।। बच्चे केवल दो ही अच्छे।।
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बन्दर मामा धूमधाम  से
शादी कर घर आये
चार साल में सोलह बच्चे
उनके घर मुस्काये |

भालू दादा बोले उनसे
सुनिए मामा बन्दर
बच्चे केवल दो ही अच्छे
होते घर के अन्दर।
-रमेशराज



 ।। स्वागत ऐसे नये साल का ।।
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दूर करे आकर अंधियारा
जिसमें तूफां बने किनारा
मिल जाता हो जिसमें उत्तर
हर टेड़े-मेड़े सवाल का
स्वागत ऐसे नये साल का।

जो आकर छल को दुत्कारे
सत्य देख उसको पुचकारे
जिसमें फूल-फूल खिलता हो
टहनी-टहनी, डाल-डाल का
स्वागत ऐसा नये साल का।

घृणा द्वेश से दूर रहे जो
मीठी-मीठी बात कहे जो
जिसमें प्यार पनप जाता हो
लोगों में बेहद कमाल का,
स्वागत ऐसे नये साल का।

जिसमें श्रम पूजा जाता हो
मेहनतकश झट मुस्काता हो
जहाँ पसीना बन जाता हो
सोना तपते हुए भाल का,
स्वागत ऐसे नये साल का।
-रमेशराज




।। दो दहेज में एक लाख।।
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बंदरिया से ब्याह रचाने
पहुँचे बदर मामा
मखमल के कुर्तें संग पहना
चूड़ीदार पजामा |

बड़ी अकड़ से बोले मामा
शादी के मंडप में
दो दहेज में एक लाख यदि
ब्याह रचाऊँ तब मैं |

हाथ जोड़कर तब ये बोला
बापू बन्दरिया का
जो गरीब है एक लाख वो
क्या दे पाये बेटा।

सबने ही तब बन्दर मामा
बार-बार समझाए
बात किसी की बन्दर मामा
लेकिन समझ न पाये।

यह सुन बंदरिया तब बोली
सुनिए बात पिताजी
इस दहेज के लोभी से मैं
करूँ न बिल्कुल शादी।

देख बिगड़ती  बात तुरत ही
भागे मामा बन्दर
रस्ते में बत्तीसी टूटी
ऐसी खायी ठोकर।
-रमेशराज
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001
मोबा.-9634551630