ब्लौग सेतु....

7 अगस्त 2016

🌹 तन्हाई 🌹

(एक किसान के जीवन में) 

जीवन सरीता में,  
                       डोले मेरी नैया क्युँ ?

तुमको हैं सुख का सागर, 
         मुझे खुशियों से किनारा क्युँ ?

धुप से लड़ता,मै,
                     रज कण बहाता हूँ |

तन चंदन घिसकर, 
           अस्तित्व तिलक लगता हूँ |

   देता सबको उजाला मैं, 
                मेरे जीवन में अंधेरा क्युँ |

जीवन सरीता मे, 
              डोले मेरी नैया क्युँ |

तुमको हैं सुख का सागर, 
           मुझे खुशियों से किनारा क्युँ |

मेरी तन्हाई की धरती पर, 
      कहते हो तुम सुख की बरखा हो |

जब सब साथ है तुम्हारे, 
                     क्यो तुम घबराते हो ?

जब तुम थे साथ हमारे तो, 
            जिंदगी मैने ठुकराई क्युँ ??

जीवन सरिता में ,
                   डोले मेरी नैया क्युँ ??

तुमको हैं सुख का सागर, 
       मुझे खुशियों से किनारा क्युँ?? 

आँखों की बेटी से,
              हुई   दुःख की सगाई है | 

सूख चले हैं आँसू, 
     आँखों में बसी बस अब तन्हाई है |

तन्हाई की दुनियां में, ए मालिक, 
                  मेरी बस्ती बसाई क्युँ ?

जीवन सरीता मे ,
              डोले मेरी नैया क्युँ ??

तुमको हैं सुख का सागर, 
         मुझे खुशियों से किनारा क्युँ ??

                     जी. एस. परमार 
......................9179236750
प्रतीक... 

तन चंदन घिसकर.... कड़ी मेहनत से 
अस्तित्व तिलक...... जीवित रहना 
म. उजाला...........        अन्न 
अंधेरा......... गरीबी 
जिंदगी ठुकराना.  .....आत्महत्या 
आँखों की बेटी...... आँसू 
............................

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