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27 जुलाई 2015

यादों में अब तक जीवित है प्यारा-सा वह गांव


­-राजेश त्रिपाठी

वह पनघट के गीत और बट की ठंडी छांव
यादों में अब तक जीवित है प्यारा-सा वह गांव।
                                     
अलस्सुबह जब मां पीसा करती जांत।
साथ-साथ दोहराती जाती परभाती की पांत।
जागिए रघुनाथ कुंअर पंछी बन बोले।
रवि की किरण उदय भयी पल्लव दृग डोले।।
    फगुआ की जब तान पर थिरका करते थे पांव।
    यादों में अब तक जीवित है ......
तारे छिटके आसमान पर धरती पर हरियाली।
डाल-डाल पर जहां कुहकती कोयलिया थी काली।।
महुआ की मदमस्त महक से महका करती भोर।
पावस में जहां नाचा करते होके मगन मन मोर।।
   मंगता से लेकर हर इक को मिलती जहां थी ठांव।
   यादों में अब तक जीवित है ......
हलधर जहां खेतों पर बोते थे अपनी तकदीर।
जाड़ा, गरमी या बारिश हो सहते थे हर पीर।।
यही टेर लगाते थे बरसो राम झमाझम पानी।
फसल होय भरपूर, चमक  जाये जिंदगानी ।।
  बिटिया को घाघरा चाहिए नंगे बापू के पांव।
                                     
  यादों में अब तक जीवित है प्यारा–सा वह गांव
                                     
    टेसू के फूलों के रंग से जहां मना करती थी होली।
   मनभावन कितनी लगती थी देवर-भाभी की ठिठोली।।
   राखी, कजरी, तीज त्योहार जहां आते लेकर खुशहाली।
   खेतों में लहलहाती किस्मत कूके कोयल डाली डाली।।
उस गांव तक पसर गये हैं अब आतंक के पांव।
यादों में अब  तक  जीवित  है प्यारा–सा वह गांव        
        सांझ-सकारे करे महाजन हर घर का फेरा।
    जहां जवान बहुरिया देखे डाले वहीं डेरा ।।
     कहने को हिसाब करे, आंखों से कुछ नापे।
     उसकी लोभी नजर देख,जियरा थर-थर कांपे।।
     पहले जैसा रहा कहां अब सपनो का वह गांव
  यादों में अब तक जीवित है प्यारा–सा वह गांव
  
   सालों पहले घुरहू के दादा ने रुपये लिये उधार।
   बंधुआ बनीं चार  पीढ़ियां पर ना चुका उधार।।
   जाने ऐसे कितने घुरहू सहते महाजनों की मार।
   जाने कब से चला आ रहा लूट का ये व्यापार।
जिसकी लाठी भैंस उसी की, चलता उसी का दांव।
यादों में अब  तक  जीवित  है प्यारा–सा वह गांव

   जहां चैन की वंशी बजती वहां चल रही गोली।
   नहीं सुनायी देती अब मनभावन प्यार की बोली।।
   सारे  रिश्ते-नातों  को  वहां दिया गया वनवास ।
   हर दिल में राज कर रही अब पैसे की प्यास ।।
शहरों की संस्कृति घुस बैठी अब मरने लगे हैं गांव।
यादों में अब तक जीवित है प्यारा–सा वह गांव
  
     देवीलाल  बेहाल  बहुत है  बढ़ता  जाता है कर्ज।
     दवा कहां से  करवाये बहुत पुराना बापू का मर्ज।।
     दिन-दिन जवान होती बिटिया, शोहदे घर में ताकें।
     लालच  से कमली का हर दिन रोम-रोम वे नापें।।
दूल्हे बिकते अब लाखों में कैसे पूजे बिटिया के पांव।

यादों में अब तक जीवित है प्यारा–सा वह गांव

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