ब्लौग सेतु....

31 मई 2015

मेरी पहली दोस्त

जब हुआ मेरा सृजन,
माँ की कोख से|
मैं हो गया अचंभा,
यह सोचकर||

कहाँ आ गया मैं,
ये कौन लोग है मेरे इर्द-गिर्द|
इसी परेशानी से,
थक गया मैं रो-रोकर||

तभी एक कोमल हाथ,
लिये हुये ममता का एहसास|
दी तसल्ली और साहस,
मेरा माथा चूमकर||

मेरे रोने पर दूध पिलाती,
उसे पता होती मेरी हर जरूरत|
चाहती है वो मुझे,
अपनी जान से  भी बढ़कर||

उसकी मौजूदगी देती मेरे दिल को सुकून,
जिसका मेरी जुबां पर पहले नाम आया|
पहला कदम चला जिसकी,
उंगली पकड़कर||

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19 मई 2015

सामयिक कविता

अब वक्त सभी से मांगता इसका तुरत जवाब
राजेश त्रिपाठी
जाने  कितने  बलिदान  दिये, तब पायी आजादी।
दिल  रोता है आज  लख, मुल्क  की ये बरबादी।।
कोई  दाने-दाने  को  मोहताज है, कोई  चाभे माल।
कोई पैसों से है खेलता,  कोई कौड़ी-कौड़ी को बेहाल।।
किसी-किसी   के  घर  में कुत्ते  तक ठंड़े घर में रहते।
कहीं  गरीब   रोटी की   खातिर, तपती धूप में जलते।।
कभी  गांव   के  गगन ने महाजन से था लिया उधार।
कुछ सौ  का कर्ज चुकाने, बंधुआ हो गया सब परिवार।।
सूखा   कहीं कहीं पर ओले, लिख रहे गांवों की तकदीर।
मर गये जाने कितने हलधर, सही गयी ना उनसे पीर।।
मालदार  हैं  मस्त  वहां, घुट-घुट  जीता  जहां गरीब।
गम को खाता,आंसू पीता, उसका बन गया  यही नसीब।।
दिल्ली के जो आका हैं, जाने कितने सब्जबाग दिखलाते।
लेकिन ये  हैं सिर्फ  खयाली, गांवों तक कब ये हैं आते।।
जो भी   राहत चली  वहां से,  भरते उससे जेब दलाल।
इसीलिए  गांव-गरीब  का अब तक सुधरा नहीं है हाल।।
भूखी  जनता  जाने  कब से, करती है बस यही सवाल।
उसका  सुख कहां  है  गिरवीं, कोई  तो  बदले ये हाल।।
जाने  कितने   बदल चुके   हैं अब तक यहां निजाम।
गांवों के  मुफलिस-मजलूमों का नहीं बना कुछ काम।।
अब  तक वहां बहुत से बंदे हैं रोजी-रोटी को मोहताज।
उन्हें  समझ आता  नहीं, ऐसा क्यों हो गया समाज।।
भोला  कहता  बिटिया  हुई सयानी, कृपा करो हे नाथ।
दूल्हा लाखों में  बिकता, उसके  कैसे पीले होवैं हाथ।।
श्रीमंतों  के   आवारा   छोरे, उसको नजरों से नापें।
अनजाने  भय से भोला  का  जियरा निशिदिन कांपे।।
चाहे  जितनी बनें स्कीमें, करोड़ों का हो जाये निवेश।
लगता  है  इससे गांवों का नहीं मिटेगा कभी क्लेश।।
गांधी  के  सपनों का भारत,  क्यों जी रहा उदास है।
गांव अभी तक पड़े उपेक्षित,  ठिठका कहां विकास है।।
क्यों  टूटे  कांच  से,  अमर शहीदों के जो थे ख्वाब।
अब  वक्त   सभी से  मांगता,  इसका तुरत  जवाब।।



17 मई 2015

मधु शाला 5 दोहो मे-जी पी पारीक



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मधुशाला मे शोर है, गणिका गाये राग!!
जाम भरा ले हाथ मे, पीने से अनुराग!!1!!

चषक लिये है साकिया, इतराती है चाल!!
सब पीकर है नाचते, ठुमकत दे दे ताल!!2!!

प्याला पीकर रस भरा, केवल रब का भान !!
लघुता या गुरूता नहि, सब मे एक ही जान !!3!!

हाला पीकर बावला, बजा रहा है गाल !!
सिर के उपर नाच रहा, स्वर्ण चषक ले काल !!4!!

मित् वत जिनको देखता, घट मे खोटे जान !!
प्याले से प्याला मिला, असल मीत है मान !!5!!

14 मई 2015

....खामोश रही तू - संजय भास्कर


खामोश रही तू,
मैंने भी कुछ न कहा,
जो दिल में था हमारे,
दिल में ही रहा
न तूने कुछ कहा
न मैंने कुछ कहा
धड़कनों ने आवाज दी,
निगाहें फिर भी खामोश रही,
ग़म दोनों को होता था जुदाई का,
जिसे हमने खामोशी से सहा
न तूने कुछ कहा
न मैंने कुछ कहा
सोचता हू मै अब,
मौका इज़हार का कब आएगा,
जब दिल में छुपे जज़्बात
लबो पे अल्फाज़ बन सज जाएगा
सोचते ही रह गए हम
......न तूने कुछ कहा
......न मैंने कुछ कहा !

 -  संजय भास्कर 

2 मई 2015

कृष्ण देखें आज किसके पक्ष है - दिगंबर नासवा

लाल रंग से रंगा हर कक्ष है
एक सत्ता दूसरा विपक्ष है

न्याय की कुर्सी पे है बैठा हुवा
शक्ति उसके हाथ में प्रत्यक्ष है

चापलूसी भी तो आनी चाहिए
क्या हुवा जो कार्य में वो दक्ष है

आज सब कैदी रिहा हो जायेंगे
छल कपट ही आज का अध्यक्ष है

आज भी शकुनी का पक्ष है भारी
गया द्वापर प्रश्न फिर भी यक्ष है

धर्म के बदले हुवे हैं मायने
कृष्ण देखें आज किसके पक्ष है !!

लेखक परिचय - दिगंबर नासवा